थोड़ा बहुत कानून हमने भी गलती से पढ़ लिया था।
हमारे माननीय जज कहते हैं कि प्रोटेस्ट करने का उनको अधिकार है उसको हम रोक नहीं सकते। भले ही पूरी दिल्ली को बंधक बना कर बैठे हों। हम उनको प्रोटेस्ट करने से कैसे रोक सकते हैं। आपको (सरकार को) चाहिए तब तक आप कानून को रोक दो नहीं तो हमें रोकना पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट से मेरा प्रश्न यह है कि क्या आप अपने उस वक्तव्य को प्रीसिडेन्ट बनाने को तैयार हैं।
मतलब कल को सारे चोर इक्कठे होकर कहेंगे की चोरी के खिलाफ सारे कानून वापस लो। हमें यह कानून मंजूर नहीं। इसको खत्म करो।
दहेज मांगने वाले कहेंगे कि यह प्रथा तो हजारों वर्षों से चल रही है इसको खत्म करने वाला कानून हमें मंजूर नहीं।
गांजा, ड्रग्स पीने वाले कानून वापस करने के लिए प्रोटेस्ट करेंगे।
तीन तलाक़ के कानून के खिलाफ आवाज उठेगी।
व्यापारी इनकम टैक्स, GST के खिलाफ धरना प्रदर्शन करेंगे।
लड़के बलात्कार के खिलाफ कानूनों को खत्म करने के लिए नँगा नाच करेंगे।
स्टूडेंट्स परीक्षाओं के खिलाफ अनशन करेंगे।
यानी जिसका दिल करेगा वो बॉर्डर सील करके बैठ जाएगा और हमारा सुप्रीम कोर्ट कहेगा हम इनको धरना प्रदर्शन करने से रोक नहीं सकते।
सरकार को चाहिए अगर कानून वापस नहीं करना है तो फिलहाल उसे रोक ले। कमेंटी बना ले। जब तक फैसला न हो कानून को मुल्तवी कर दे।
वाह... वाह...
क्या शानदार फैसला है।
फिर
फिर क्या?
बलात्कारी तब तक बलात्कार करेगा जब तक कमेटी अपना निर्णय न ले ले क्योंकि कानून तो सस्पेंडेड है
व्यापारी टैक्स न देगा
चोर चोरी करेगा
मुल्ल्ला तलाक देगा
वर का बाप दहेज लेगा
विद्यार्थी बिना परीक्षा के पास होगा
यह सब होगा क्योंकि सरकार को चाहिए कानून को तब तक रोक ले जब तक प्रोटेस्ट चल रहा है। क्योंकि प्रोटेस्ट करने का उनका हक है जिसे सुप्रीम कोर्ट छीन नहीं सकता।
अब ज्यादा क्या लिखूं। नहीं तो सुप्रीम कोर्ट अवमानना के जुर्म में एक रुपया फाइन ठोक देगा। जैसे कि प्रशांत भूषण को ठोका था।
जी की पोस्ट